दुख की बात है, अधिकांश नहीं खुश,
अपने शरीर से, उसकी सूरत से।
लेकिन मैं हूँ, एकदम पतला,
फिर भी दिल में ख़ुशी का आलम है।

क्या फर्क पड़ता है, वज़न का,
जब मन में संतोष हो भारी?
मुझे मिला है एक हल्का सा रूप,
लेकिन मैं हूँ पूरी तरह से यथार्थ।

तुनकमिज़ाज नहीं, न खुद से जूझता,
बस अपने शरीर को अपनाया है।
न जरूरत है किसी से तुलना की,
अपने रूप में, ख़ुद को पाया है।

पतला हूँ, तो क्या हुआ?
मैं खुश हूँ, हर रूप में।
इसमें भी कोई विशेष बात नहीं,
बस दिल में प्यार है, खुद के प्रति।

क्योंकि शरीर सिर्फ एक आच्छादन है,
मैं उससे कहीं अधिक हूँ।
पतला हूँ, मगर पूरा,
संतुष्ट, खुश, और खुद से प्यार करता हूँ।


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