आपका असली घर और हृदय का स्थान

आपका असली घर और हृदय का स्थान
अपने ऊष्मा को छिपाएं नहीं
सत्य ही कहा गया है कि आपका असली घर और हृदय का स्थान वही है जहाँ आप स्वाभाविक रूप से बैठते हैं। यह वह स्थान है जहाँ आपकी वास्तविकता को पोषण मिलता है और आपका अस्तित्व ऊष्मा पाता है। जैसे ही आप इस ऊष्मा और पोषण को महसूस करते हैं, आपकी सृजनात्मक चिंगारी प्रज्वलित हो जाती है।


हृदय की ऊष्मा को छिपाने का नहीं है रिवाज,
उसे जगमगाने दो, यही है सच्ची आवाज़।
जहाँ दिल को मिले उसका असली स्थान,
वही है आपका असली घर, वही है आपका महान।"


घर और हृदय का महत्व
"अथातो गृहस्थाश्रमं प्राप्य," अर्थात् गृहस्थाश्रम प्राप्त करने पर, व्यक्ति को अपने घर और परिवार का पोषण और संरक्षण करना चाहिए। यह श्लोक वैदिक साहित्य में गृहस्थाश्रम के महत्व को उजागर करता है। घर और हृदय का स्थान केवल चार दीवारों का घर नहीं होता, बल्कि वह स्थान होता है जहाँ हम सच्चे मन से जुड़ते हैं और अपने अस्तित्व को पोषित करते हैं।

आपके स्वाभाविक स्थान की परिभाषा
"कोमल भावनाओं का वो कोना,
जहाँ आत्मा पाती सुकून का दौना।
वो आँगन, वो छत, वो दीवारें,
जहाँ दिल की धड़कनें हो न हारें।"

यह पंक्तियाँ इस बात को स्पष्ट करती हैं कि हमारा स्वाभाविक स्थान वह होता है जहाँ हम अपने दिल की सुनते हैं और जहाँ हमारी आत्मा को शांति और सुकून मिलता है।

सृजनात्मकता का स्रोत
"सृजन वही, जहाँ मन रम जाए,
जहाँ आत्मा को उसका स्थान मिल जाए।
हर भाव, हर विचार, जब हो सजीव,
तभी तो सृजन की ज्वाला हो प्रत्यक्ष प्रवीण।"

जब हम अपने घर और हृदय के स्थान पर होते हैं, तो हमारी सृजनात्मकता अपने चरम पर होती है। यह वह समय होता है जब हमारी कल्पनाएँ उड़ान भरती हैं और हमारे विचारों को नया रूप मिलता है।

अपनी ऊष्मा को परिभाषित करें
"स्वयं को जानें, अपनी ऊष्मा को पहचानें,
हर कोने को अपने रंगों से सजाएँ।
जहाँ दिल की धड़कनें हो सजीव,
वही है आपका असली निवास, वही सजीव।"

इसलिए, अपने स्वाभाविक स्थान को परिभाषित करें और उसे अपने जीवन में अभिव्यक्त करें। यह स्थान वह होगा जहाँ आपकी आत्मा को वास्तविक ऊष्मा मिलेगी और आपका सृजनात्मक स्पार्क प्रज्वलित होगा।



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