सच्चे घर और आत्मिक ताप का महत्व

### सच्चे घर और आत्मिक ताप का महत्व

हमारी आधुनिक जीवनशैली में, हम अक्सर बाहरी दुनिया में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि अपने अंदर के ताप और आनंद को छिपा लेते हैं। किन्तु, सच्चा घर और आत्मिक ताप वही है जहां हम स्वाभाविक रूप से बैठते हैं और जहां हमारी आत्मा को गर्माहट और पोषण मिलता है। यह वही स्थान है जहां हमारी रचनात्मक चिंगारी प्रज्वलित होती है।

#### घर और हृदय का संबंध
"अहंकारो ममोपेक्ष्या, आत्मतत्त्वं निराकृतम्।
स्वतन्त्रः प्राकृतः सिद्धः, स एव पुरुषः स्मृतः॥"

इस श्लोक में बताया गया है कि स्वाभाविकता और आत्मा का महत्व क्या है। एक व्यक्ति जो अपने सच्चे रूप में जीता है, वही सच्चे अर्थों में स्वतंत्र और सिद्ध है। घर केवल चार दीवारों का नाम नहीं है, बल्कि यह वह स्थान है जहां हम स्वयं को सम्पूर्णता में महसूस करते हैं।

#### आत्मिक ताप का महत्व
"जो गर्मी है तेरे प्यार में,
वो कहां किसी चूल्हे में।
तेरे स्पर्श से मिलता है सुख,
वो कहां किसी और रूप में।"

आत्मिक ताप वह है जो हमें अंदर से गर्म रखता है। यह वह अहसास है जो हमें अपने प्रियजनों के साथ मिलता है। जब हम अपने प्रियजनों के साथ होते हैं, तब हमें एक प्रकार की आंतरिक ऊर्जा और संतुष्टि का अनुभव होता है।

#### रचनात्मकता और आत्मिक ताप
"जहां प्रेम है, वहां शांति है।
जहां शांति है, वहां आनंद है।
जहां आनंद है, वहां रचनात्मकता है।
जहां रचनात्मकता है, वहां आत्मा है।"

यह कहावत हमें याद दिलाती है कि जब हम अपने सच्चे घर में होते हैं, तब हम सबसे ज्यादा रचनात्मक होते हैं। यह वह समय है जब हमारी आत्मा में उठने वाली हर छोटी-छोटी चिंगारी एक बड़ी रचना का रूप लेती है।

#### अपनी गर्माहट को न छिपाएं
"तपने से पहले, खुद को पहचान।
गर्म हो, तब हर जगह तुम्हारा घर।
हर दिल तुम्हारा आशियाना बने,
हर जगह हो तुम्हारी पहचान।"

इस कविता के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि हमें अपनी गर्माहट और प्यार को कभी छिपाना नहीं चाहिए। जब हम अपनी सच्चाई को अपनाते हैं और अपने अंदर की गर्मी को प्रकट करते हैं, तब ही हम अपने असली घर को महसूस कर सकते हैं और वहीं से हमारी रचनात्मकता का स्रोत बहने लगता है।

#### निष्कर्ष
सच्चा घर और आत्मिक ताप वह है जहां हम स्वाभाविक रूप से स्वयं को प्रकट कर सकते हैं। यह वह स्थान है जहां हमारी आत्मा को पोषण मिलता है और जहां हमारी रचनात्मकता प्रज्वलित होती है। इसलिए, हमें अपनी गर्माहट और आत्मिक ताप को कभी भी छिपाना नहीं चाहिए। जब हम अपने असली रूप में जीते हैं, तब ही हम सच्चे अर्थों में घर और आत्मिक ताप का अनुभव कर सकते हैं।

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