दर्द और दरियादिली



मैं हूँ जवान, सुंदर, और थोड़ा टैलेंटेड,
थोड़ा सा अमीर भी, कूल और बहुत डेडिकेटेड।
लेकिन ओ यार, ये जो दर्द है न,
वो सब कुछ छीन लेता है, कुछ भी न बचता है!

हाथों में सोने की चूड़ियाँ,
मगर दर्द में बंधा हूँ, सारी खुशी छूटी।
इंस्टाग्राम पर फोटो, पर अंदर से टूटता,
आखिरकार, दर्द ही सच्चा साथी, जो कभी न झूठता।

गाड़ी में बैठा, सोने का बिस्तर,
सब कुछ हो फिर भी, बस ये दर्द किलर।
क्या फर्क पड़ता है दुनिया में जो कुछ भी है,
जब शरीर बुरी तरह तड़पता है?

पर हाँ, क्या करूँ, मैं हंसता हूँ,
सभी से कहता हूँ— "मुझे दर्द से कोई फर्क नहीं!"
शायद मैं मज़ाक करता हूँ, शायद खुद को बहलाता,
लेकिन ये दुनिया इतनी मस्त है, फिर भी इसे जी जाता।

कभी ये दर्द, कभी वो, फिर भी मैं चलता,
मुझे क्या, जैसे भी हो, मैं तो बस हंसी उड़ाता।
क्योंकि जीवन में यही मज़ा है,
कभी हंसी, कभी दर्द, फिर भी सब कुछ अपना है!


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