कि हर पल प्रकाश और आनंद से भरा होना आवश्यक नहीं,
स्वयं की महत्ता को जानने के लिए।
छाया तो बस छाया ही रहेगी,
कभी नहीं बनेगी आपकी आत्मा का प्रकाश।
छाया का समायोजन आत्म-स्वीकार है,
सबसे गहरे स्तर पर।
छाया के बिना भी अस्तित्व है,
प्रकाश और अंधकार दोनों के साथ।
स्वयं की पहचान में ही जीवन का सार है,
स्वीकृति और प्रेम से भरपूर।
जो छाया में है, वह भी तुम्हारा हिस्सा है,
जिसे अपनाने से ही आत्मा को शांति मिलेगी।
छाया और प्रकाश का मिलन,
पूर्णता की ओर एक कदम है।
अस्वीकार और विरोध नहीं,
स्वीकारोक्त और समायोजन में ही
सच्ची शक्ति और समझ छिपी है।
छाया में भी तुम्हारी आत्मा का अंश है,
जिसे स्वीकारने से ही आत्मा को पूर्णता मिलेगी।
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