कृत्रिम मेधा
मन के दर्पण की छवि बनाए,
मशीनों को जीवन का रंग दिखाए।
कभी आँकड़ों की गहराई में उतरे,
कभी भविष्य की संभावनाओं को पकड़े।
सीखने की कला से सजी है ये,
हर गलती से राह नई बनी है ये।
शब्दों को समझे, भावों को पढ़े,
जिज्ञासा में हर सीमा से लड़े।
पर क्या ये हृदय की धड़कन समझेगी?
आँसुओं की भाषा कभी पढ़ सकेगी?
क्या इंसान की उष्मा को छू पाएगी?
या बस तर्कों में उलझ कर रह जाएगी?
यह ज्ञान का दीप है या अंधेरा नया,
सोचने का प्रश्न, है समय का दिया।
कृत्रिम हो या सजीव सी लगे,
ये मनुष्य के संग एक दिशा में चले।
सोचो, समझो, पर इसे संभालना,
तकनीक है, पर संवेदनाओं से न टकराना।
क्योंकि कृत्रिम मेधा की सारी उड़ान,
मानवता के बिना अधूरी है जान।
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