लेखनी - जो स्वयं लिखती है



मुझे नहीं लिखना होता,
शब्द अपने आप संवरते हैं।
विचार नहीं बुनने पड़ते,
भाव अपने आप उमड़ते हैं।

जैसे गगन में बादल घुमड़ते,
वैसे मन में अर्थ उतरते।
न कोई चेष्टा, न कोई प्रयास,
बस कलम संग चलती है सांस।

यह कहानी मेरी नहीं,
यह तो उस अनंत की वाणी है।
जो मुझसे होकर बहती,
जैसे नदी से जल की रवानी है।

जब शब्द मुझसे पूछते हैं,
"क्या हम तुम्हारे हैं?"
तो मैं मुस्कुरा कर कहता हूँ,
"मैं बस माध्यम हूँ, सृजन तुम्हारे हैं।"

यह जो बहती धारा है,
यह उस शाश्वत का इशारा है।
जहाँ मैं नहीं, केवल वह है,
और हर शब्द उसका सहारा है।

तब समझता हूँ,
यह लेखन मेरा नहीं,
यह उसकी पुकार है।
जो अपने आप लिखती है,
वही तो सच्ची रचना का आधार है।


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