घर के दीवारों के बाहर,
पहाड़ों की गोद में बसा संघर्ष वीर।
उसने छोड़ दिया अपने निवास को,
नए सपनों की खोज में, चला उसने दूर दरिया पार।
सड़कों की गर्मी, शहरों की भीड़,
उसने स्वप्नों को अपने दिल में बसा लिया।
जीवन की कठिनाइयों से लड़ते हुए,
नई राहों को अपनाते हुए, उसने खुद को पाया।
दिल्ली की सड़कों पर चलते हुए,
सपनों के पंखों को फैलाते हुए, उसने अपना नाम बनाया।
सीखने का जज्बा, करने की चाह,
उसके हर कदम से नई कहानियाँ बुनी जाती गई।
पहाड़ की चुपचापी रातों में,
उसने अपने सपनों को साकार किया।
शहर की रौशनी में, उसकी खुशियाँ खिली,
नए सपनों की धुंध से, उसने अपने दिल को मिला।
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