दिल्ली की धूम-धाम में,

ऊँची पहाड़ों की चोटी से,
निकला एक युवा वीराना हवाओं के सहारे।
छोड़ आया घर की छाँव, छोड़ गया अपने परिवार का संग,
शहरों की गलियों में, उसने अपना नाम बुना हर रंग।

दिल्ली की धूम-धाम में, उसने अपनी दास्ताँ लिखी,
जीवन की हर कठिनाई से, वह ने अपनी मंजिल को सलाखों में छिपी।
शहर की भीड़ में, खो गया वह अकेला,
पर अपनी ताक़त से, जीता उसने हर अजनबी का मेला।

जीने का नया अद्भुत अनुभव, सिखता गया वह हर पल,
कठिनाइयों में भी, ढूँढता गया अपना लक्ष्य का पता।
पहाड़ के पीछे से, शहरों की दुनिया में,
वह खोजता रहा, अपने सपनों की वही सीमा।

धरती की गोद में, बड़े-बड़े शहरों की खोज,
उसने किया अपना नाम, बनाया अपनी ही कोशिशों का मोल।
पहाड़ के ऊपर से, शहरों में आकर,
वह जीता गया, खुद को पहचानकर।

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