पर साथी, तू भी तैर, नई किनारे की तलाश में।
गम का पहाड़ है, ऊँचा और विशाल है,
लेकिन हौसला मत हार, नयी राह पे है सफ़र में।
तू मुसाफिर है इस ज़िंदगी के सफ़र में,
रुक, सोच, और फिर चल, नई उड़ान की तलाश में।
अखंड है, अचल है, अजेय वही, जिसे न झुका सके कोई शक्ति कभी। माया की मोहिनी भी हारती है, वेदों की सीमा वहाँ रुक जाती है। जो अनादि है, अनंत है, ...
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