मुसाफ़िर हूँ मैं, राहों का रंग देखने को आया,उड़ने की इच्छा, अधूरी कविता को पूरा करने को आया

गम की आंधी में डूबते हुए, क्या मैंने था तुम,
या गम की गहराई में, क्या तुमने थे मैं।

गम से बाहर निकालकर, नयी राहें चुनी हमने,
नए सपने सजाए, नई ज़िंदगी की कहानी हमने।

भूल गये थे हम, गम का वास्तविक रूप,
एक पल का है, ये धरा का सौंदर्य रूप।

नयी सुबह के साथ, नया सफ़र आएगा,
राहों में बिखरे, नया संगीत गा पाएगा।

मुसाफ़िर हूँ मैं, राहों का रंग देखने को आया,
उड़ने की इच्छा, अधूरी कविता को पूरा करने को आया।

एक पेड़ के नीचे, अटके हुए थे हम,
मगर उसके शाखाओं से, नई उम्मीद की ख़ुशबू आई हमें।

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