मुझे सख्त होना पसंद नहीं

मुझे सख्त होना पसंद नहीं,
क्योंकि हम हँस सकते थे, खेल सकते थे,
रंगों में भीग सकते थे,
बिन बोझ के बातें कर सकते थे।

पर जिम्मेदारियाँ पकड़ लेती हैं,
कभी नियमों की जंजीर,
कभी वक्त की रस्सियाँ।
और मैं चाहकर भी ढील नहीं दे सकता।

काश, सख्ती की जगह सिर्फ़ हँसी होती,
फर्ज़ की जगह सिर्फ़ आज़ादी।
हम साथ होते,
बिना किसी रोक-टोक के।


No comments:

Post a Comment

Thanks

छाँव की तरह कोई था

कुछ लोग यूँ ही चले जाते हैं, जैसे धूप में कोई पेड़ कट जाए। मैं वहीं खड़ा रह जाता हूँ, जहाँ कभी उसकी छाँव थी। वो बोलता नहीं अब, पर उसकी चुप्प...