महानता का मूल चरित्र



महानता न बुद्धि का वरदान है,
न तीव्र मस्तिष्क का कोई प्रमाण है।
यह तो हृदय की गहराइयों से उपजती,
चरित्र की मिट्टी में धीरे-धीरे ढलती।

बुद्धिमत्ता चमकती है पल भर के लिए,
पर चरित्र स्थायी है युगों-युगों तक।
सफलता तो क्षणिक झोंका है हवा का,
पर चरित्र वह दीप है जो कभी न बुझा।

सच्चा चरित्र नहीं बनता सुख के रंगों से,
यह तो तपता है दुख के अंगारों में।
हर आँसू जो गिरा, वह बीज बना,
हर पीड़ा ने व्यक्ति को महान किया।

जो टूटे हैं, वही समझते हैं दर्द का सार,
उनकी सहानुभूति में छिपा है संसार।
जो अंधेरों से गुज़रे, वही प्रकाश लाए,
जो गिरे, वही उठने का साहस दिखाए।

चरित्र निखरता है संघर्षों के बीच,
जहां सपने टूटते हैं, और इरादे सींच।
जहां हर हार एक सबक बन जाए,
जहां हर चोट आत्मा को गढ़ जाए।

बुद्धिमत्ता तो बनाती है योजनाएँ बड़ी,
पर चरित्र देता है उन्हें आत्मा नई।
वह सत्य, करुणा और धैर्य सिखाता है,
जीवन को मानवीयता से भर जाता है।

तो मत गर्व करो केवल अपने ज्ञान पर,
नहीं है यह महानता का आधार।
महान वही, जो दुख से बना है अमर,
जिसका चरित्र है धैर्य, सत्य और विचार।

याद रखो, चरित्र की अग्नि से गुजरना,
हीरे को चमक देने जैसा है सुंदर।
और महानता वही, जो चरित्र से बहे,
जो इंसान को इंसान बना कर रहे।


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