विनम्रता का दीप
विनम्रता से मिटता अहंकार,
हरि द्वार पर झुके यह संसार।
गर्व का तिलक जब छूटे,
जीवन का अर्थ तभी फूटे।
नीच झुककर ही ऊँचाई मिले,
द्वार पर सिर झुकाकर सच्चाई खिले।
न यह कमजोरी, न यह भय,
यह तो है ब्रह्म का परिचय।
कर्म की धारा बहती जाए,
फल की चिंता व्यर्थ ही छाए।
श्रीकृष्ण कहते, सुनो यह ज्ञान,
जो बोओगे वही है दान।
जगत में देखो ईश्वर का रूप,
प्रेम और आदर से जुड़ता यह सूत्र।
हर फूल, हर कण, हर श्वास,
यहीं ब्रह्म की हो जाती बात।
जीवन को सादगी से सजाओ,
विनम्रता और कर्म का गीत गाओ।
फल की आशा छोड़ चलो,
ईश्वर में समर्पण का दीप जलाओ।
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