सच्ची मित्रता



तुम पूछते हो, सच्ची मित्रता क्या है?
क्या है वह बंधन, जो न टूटे, न रुके,
जो समंदर की गहराई में लहराए,
जो आकाश के विस्तृत आँगन में पंख फैलाए।

मुझे यह प्रश्न जटिल सा लगता है,
तुम्हारे भीतर कहीं, एक गहरी हलचल है,
तुम यह जानना चाहते हो कि मित्रता क्या है,
पर असल में तुम यह समझना चाहते हो कि प्यार क्या है।

सच्ची मित्रता वह नहीं जो स्वार्थ से जुड़ी हो,
जो केवल यौनाकर्षण या आर्थिक लेन-देन से जुड़ी हो,
यह वह प्रेम है, जो बिना किसी शर्त के होता है,
जो किसी के बदले में कुछ नहीं चाहता,
जो सिर्फ देना जानता है, बिना किसी अपेक्षा के।

मित्रता का मतलब है कि तुम स्वयं को बलिदान करने को तैयार हो,
कभी कोई दोस्त तुम्हारी मदद की सच्ची आवश्यकता में हो,
तो तुम उसके लिए अपना समय, अपनी ऊर्जा, सब कुछ दे सकते हो,
क्योंकि तुम उसे अपने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हो।
यह व्यापार नहीं, यह प्यार की पवित्रता है।

लेकिन फिर, जब तुम और अधिक सजग हो जाते हो,
तुम्हारी मित्रता, मैत्री में बदलने लगती है,
मैत्री वह रूप है जो कहीं अधिक गहरा,
कहीं अधिक विराट, कहीं अधिक व्यापक है।
मैत्री वह है जो किसी शर्त या स्थिति से नहीं बदलती,
वह कभी शत्रुता में नहीं बदलती,
क्योंकि यह सत्य के साथ जुड़ी होती है।

  मित्रता, हमारे मन की अस्थिरता पर निर्भर होती है।
हमारी मित्रता कभी नफरत में बदल सकती है,
क्योंकि हमारे भीतर की घृणा और प्रेम,
सभी एक साथ चलते हैं,
हमारी अनजानी मनोस्थिति से प्रभावित होते हैं।

मित्रता में यह संभावना रहती है कि वह शत्रुता में बदल जाए,
लेकिन मैत्री, जो नफ़रत से परे है, कभी नहीं बदलती।
मैत्री केवल तभी संभव है,
जब तुम स्वयं को पूरी तरह से जानते हो,
जब तुम अपने भीतर की गहराई को महसूस करते हो,
जब तुम अपने अस्तित्व से पूरी तरह जुड़ जाते हो।

तुम पूछते हो कि सच्ची मित्रता क्या है,
मैं कहता हूँ, यह मैत्री है,
जो हर चीज में बसी होती है,
यह न केवल मनुष्य में,
बल्कि पेड़ों में, नदियों में, पहाड़ों में,
यह हर जीवित और निर्जीव में बसी है।

मैत्री वह प्रेम है जो पूरे अस्तित्व से जुड़ा है,
जो केवल एक व्यक्ति से नहीं,
बल्कि समग्र से प्यार करता है।
यह आत्मा का कनेक्शन है,
यह हर उस चीज से जुड़ा है,
जो सच्ची और प्रामाणिक है।

मैं कहता हूँ,
तुम मित्रता का स्वाद तभी चख सकते हो,
जब तुम स्वयं के प्रति सच्चे और प्रामाणिक हो।
तुम उस प्यारी सुगंध को महसूस करोगे,
जो केवल अनुभव से ही जानी जा सकती है,
जो कभी पकड़ में नहीं आती,
क्योंकि वह आकाश से फैलती है,
और हम जैसे छोटे हाथों से उसे पकड़ना संभव नहीं।

मैत्री को पकड़ने की कोई कोशिश नहीं कर सकता,
यह स्वतः महसूस होती है,
यह केवल उन लोगों के लिए होती है,
जो अपने भीतर गहरे से जुड़ चुके हैं,
जो केवल आत्मा से प्रेम करते हैं,
जो न किसी से कुछ चाहते हैं,
न कुछ पाने की आकांक्षा रखते हैं।

तुम पूछते हो, "सच्ची मित्रता क्या है?"
यह वह नहीं जो दूसरों से जुड़ी हो,
यह वह है जो तुम्हारे भीतर है,
तुम्हारे अस्तित्व का हिस्सा है,
यह एक अदृश्य बंधन है,
जो कभी टूटता नहीं, कभी बदलता नहीं।

जब तुम मैत्री का अनुभव करोगे,
तब तुम समझोगे कि यह प्रेम का सबसे पवित्र रूप है,
यह एक ऐसी सुगंध है,
जो पूरे आकाश में बसी है,
और तुम्हारे चारों ओर हर समय लहराती रहती है।
यह अस्तित्व का सत्य है,
जो तुमने अब तक महसूस नहीं किया।
लेकिन जब तुम इसे महसूस करोगे,
तब तुम जानोगे कि तुम जीवन के सबसे बड़े सत्य से जुड़ गए हो।


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