हम जो लड़ते हैं दानवों से,
वो कहीं बाहर नहीं होते।
अंधकार के जो साए दिखते,
वो हमारे भीतर ही पलते।
मनोविज्ञान के जाल में,
हम खुद को ही हराते हैं।
दुनिया पर जो चित्र बनाते,
असल में हम खुद को तरासते हैं।
प्रक्षेपण की परछाई में,
सत्य कहीं छिपा सा है।
जो देख रहे हो बाहर तुम,
वो तुम्हारा ही सपना है।
हर रिश्ता, हर चेहरा, हर गाथा,
हमारे भीतर की कहानी है।
दुनिया के रंग जो दिखते हमें,
हमारी दृष्टि की निशानी है।
जब जान लिया ये सत्य गहन,
फिर जग से कैसा बैर?
हर व्यक्ति है दर्पण अपना,
हर संघर्ष में है प्रेम का घेर।
दृष्टि का जो पर्दा हट जाए,
प्रेम का सागर दिख जाएगा।
दुनिया नहीं है शत्रु तुम्हारी,
तुम ही सब हो, ये समझ आएगा।
अतः लड़ाई बाहर नहीं,
अंदर के दानव से करो।
प्रक्षेपण के मोह से उठकर,
सच्चाई के संग चलो।
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