प्रक्षेपण का भ्रम



जिनसे तुम लड़ते हो दिन-रात,
वो दानव नहीं, बस छाया हैं।
तुम्हारी ही दृष्टि का प्रतिबिंब,
यह दुनिया की माया हैं।

पर समझो ज़रा,
जब प्रक्षेपण को बस प्रक्षेपण मानोगे।
तब भीतर की शक्ति का स्रोत,
फिर से खुद में ही जानोगे।

वो डर, वो क्रोध, वो ईर्ष्या का बंधन,
कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं रखते।
जब इन्हें "महत्वहीन" समझ सको,
तो ये तुम्हें कभी नहीं डराते।

जो कुछ भी बाहर दिखता है,
वो भीतर के भावों का चित्र है।
अगर इसे सिर्फ "आभास" कह दो,
तो जीवन ही एक नई दृष्टि है।

महानता का भार न दो इन्हें,
ये केवल पल के ख्याल हैं।
तुम्हारे मन के जाल में फंसे,
ये सब बस मिट्टी के ढाल हैं।

शक्ति वापस लौटती वहीं,
जहाँ तुमने उसे छोड़ा था।
जब प्रक्षेपण को नकार दोगे,
तब जीवन का मूल सोना था।

तो देखो इन्हें, पर छुओ नहीं,
दिखने दो इन्हें, पर पकड़ो नहीं।
तुम सत्य हो, तुम शाश्वत हो,
प्रक्षेपण का भ्रम तुम पर भारी नहीं।


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