चल फिर उड़ा ले सांसो को सांसों से
उस सांस में जीवन और मरण का जो बंधन है
उसे तोड़ दे ।
प्याली जो खाली है
मदहोशी की उस में
प्रेम के बीज बोकर भर दे
रंगिनोयों से।
ओर घटक के पी जा
जो भी है उसमें चाहे तो
जहर हो या अमृत
बस पी कर पार कर
दे उस भव सागर को।
सांस
Labels:
कविता
Aim to provide thought leadership and pave the way forward for storytelling.
Screen Writer & Creative Director with a demonstrated history of working in the Motion Pictures and Multi-Media Industry. Skilled in Creative Writing, Film Production, and Digital Marketing. Strong Media and Communication professional with a Bachelor's Degree focused in B.SC Electronic Media from Makhanlal Chaturvedi National University of Journalism & Communication, Noida.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
The Profound Benefits of Anulom Vilom Pranayama: A Journey to Inner Peace and Health
Anulom Vilom Pranayama, also known as alternate nostril breathing, is a powerful breathing practice from ancient yogic traditions. It involv...
-
यादों का गुब्बरा देखो ये फूट गया है उस गगन में जिस में हम खुद जाना चाहते थे मगर हम जा न पाए तो क्या हुआ हमारी निशानी उस मुक्त गगन में उड़...
-
भारत जितना बड़ा धार्मिक देश है उतने ही ज्यादा यहां धार्मिक स्थल है... और इन धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालुओं के द्धारा दान दिया जाता है जिसक...
-
जब मीरा यह कहती है कि बस इन तीन बातों से काम चल जाएगा और कुछ जरूरत नहीं है और कभी कुछ न मांगूंगी, बस इतना पर्याप्त है, बहुत है, जरूरत से ज्य...
No comments:
Post a Comment
thanks