दूर जाना, एक स्पष्ट अंतरात्मा के साथ,
नहीं दर्शाता कि तुम थे संपूर्ण।
यह तो बस ये कहता है,
कि तुम्हारे दोष थे मानव होने के सबूत।
हर गलती में छुपा था प्रयास,
संबंध को जीवित रखने का विश्वास।
ना कोई छल, ना कोई घात,
ना साथी के प्रति अपमान का बात।
"धर्मो रक्षति रक्षितः।"
धर्म वही जो सत्य के संग चले।
ना स्वार्थ, ना द्वेष,
ना ईश्वर के प्रति कोई अपराध।
यह स्वीकारना कि तुम अपूर्ण हो,
अपने आप में एक पवित्र सत्य है।
तुम्हारा दिल साफ़ था,
और हर क़दम में थी सिर्फ़ मानवता।
शादी एक यात्रा है,
जहाँ दोनों चलाते हैं एक नाव।
यदि तूफान में नाव डगमगाए,
तो दोष केवल इंसानी त्रुटियों का आए।
तुमने दिया था अपना सर्वस्व,
अपनी क्षमता भर प्रेम।
जो छूटा वो नियति थी,
पर तुम्हारे दिल में न थी कोई धुंध।
इसलिए जब तुम चले,
तुम्हारा मन शांत था।
तुम्हारे कर्मों ने तुम्हें निर्दोष किया,
और तुम्हारी आत्मा को मुक्त किया।
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