एकाकी मन का संगम



अकेलापन, एक छाया जो मेरे साथ चलती रही,
हर खामोशी में गहराई से हलचल करती रही।
यह एक दर्पण था, जो मुझे दिखाता रहा,
मेरे भीतर का खालीपन, जिसे मैं भरना चाहता रहा।

रिश्तों में मैं प्यास लेकर गया,
स्नेह के हर कतरे को मैंने अपने नाम किया।
पर जितना माँगा, उतना खोता गया,
जैसे रेगिस्तान में पानी ढूंढ़ता रहा।

अकेलापन मुझे सिखाता रहा,
कि जुड़ना केवल खोज नहीं, साझा करना है।
रिश्ते कोई गहरी खाई नहीं भरते,
वे तो दो पूर्णताओं का संगम करते।

जब मैंने खुद को अपनाना सीखा,
अकेलेपन को अपना साथी बनाना सीखा।
तब रिश्तों का अर्थ बदलने लगा,
अब वे जरूरत नहीं, प्रेम का बहाव बनने लगा।

मैंने जाना, कि सच्चाई वहीं बसती है,
जहां मैं पहले से पूरा हूँ, न अधूरा हूँ।
रिश्ते अब बोझ नहीं, एक नृत्य हैं,
जहां दो आत्माएँ साथ चलती हैं।

अकेलापन अब दुश्मन नहीं,
यह तो एक शिक्षक है, जो राह दिखाता है।
मुझे सिखाया कि खुद से प्रेम करना,
हर रिश्ते का पहला अध्याय बन जाता है।

तो मैं अब जुड़ता हूँ बिना प्यास के,
बिना किसी दरार को भरने की आस के।
यह अकेलापन, मेरा मित्र, मेरा मार्गदर्शक है,
और रिश्ते, अब मेरी यात्रा का संगीत हैं।


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