हर पल एक अड़चन है
आज अपनी राह में अड़चन है।
कल शायद राह नही न हो
फिर भी चलने का ख़्वाब रखते हैं हम।
अड़चन तो सदा रहेगी पर क्या
अड़चन से लड़ने के लिए तैयार हैं हम।
ख्याली दुनिया जो बसायी
उसी के लिए इतने बेकरार हैं हम।
अड़चनों का धुआं मन में फैला रहा है भ्रम
भ्रम में जी कर इस पल को भूल रहे हैं हम ।
ये पल ही वो पल है जिससे हर पल की
अड़चन को दूर कर सकते हैं हम ।
हर पल एक अड़चन है, हर अड़चन एक पल है
जिसका घूंट हर पल पी रहे हैं हम
ये पल हर पल है,हर पल जीना ही जीवन है
तो क्या हर पल जीवन जी रहे हैं हम ।
दीपक डोभाल
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