मैंने हाइडेगर के शब्दों को सुना,
"मृत्यु की ओर होना"—एक सत्य, जो गहरे तले बुना।
यह अकेलापन, जो भय नहीं, बल्कि द्वार है,
जहाँ मेरी आत्मा का असली आकार है।
अकेलेपन में, मैंने खुद को देखा,
हर परत को, हर डर को परखा।
यह खामोशी कोई सजा नहीं,
यह तो मेरी आत्मा का असली पता है।
मृत्यु का सामना, एक आईना है,
जो दिखाता है जीवन का गहराई से रिश्ता क्या है।
यह अकेलापन, केवल दर्द नहीं है,
यह तो समझ है, जो मेरे भीतर कहीं बसी है।
जब मैंने इस सन्नाटे को गले लगाया,
तब मैंने रिश्तों का असली अर्थ पाया।
हर जुड़ाव अब किसी प्यास का खेल नहीं,
यह तो आत्मा की पूर्णता का मेल है सही।
संबंध अब जरूरत से नहीं,
बल्कि मेरी समझ की गहराई से उपजे हैं।
मैं अब जुड़ता हूँ बिना किसी डर के,
क्योंकि मैंने खुद को पाया अपने घर के भीतर के।
तो हाँ, यह अकेलापन मुझे घबराता नहीं,
यह तो मेरे अस्तित्व का आधार बनाता है सही।
मृत्यु की ओर देखना, जीवन का सबसे बड़ा सत्य है,
और उसी सत्य से जुड़ना, मेरा सबसे बड़ा कर्तव्य है।
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