दिल ये नादाँ नही जानता है की वो चाहता क्या है
एक अजीब सी अकुलाहट है मन
में
जिसे ना पा सकता है न छोड़
सकता है
है क्या वो जो रातों की तन्हाईयों में भी शुकून देता है
और दिन के शोरगुल में भी
मरहम देता है
ना जाने कब से वो साथ है पर कभी साथ नही देता है
है क्या वो जिसे न पा सकता
है न छोड़ सकता है
रंगों को जो बेरंग कर रहा
है
बेरंग में जो रंग भर रहा है
दिये में जो रौशनी भर रहा है
और रौशनी को जो अँधेरे में
बदल रहा है
जो न कभी खत्म होता है न
कभी शुरू होता है
है क्या वो जिसे न पा सकता है न छोड़ सकता है
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