सच में परवाह न करना



सच में परवाह न करना,
मतलब बेरुख़ी या उदासी नहीं,
ये तो वो ख़ुदगी है,
जहाँ बाहरी शोर का असर नहीं।

दुनिया के तानों और तारीफ़ों से,
जब तुम अपनी राह न मोड़ो,
ख़ुशी के इस खेल में,
अपना ही सूरज तुम जोड़ो।

ये नफ़ा-नुकसान का हिसाब नहीं,
ये जीवन को खुलकर जीने की बात है।
जहाँ हर फ़ैसला तुम्हारा हो,
ना किसी और की सौग़ात है।

जो कहते हैं तुम्हें गिराने को,
उनकी आवाज़ को तुम दबा दो।
अपने सपनों के रंग भरो,
हर मुश्किल को अपना बना लो।

सच में परवाह न करना,
मुक्ति का सच्चा ज़रिया है।
जो सच में मायने रखता है,
बस वही तुम्हारा संसार है।


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