मानव स्वर्ग का स्वप्न



हमारे पास धन है, शक्ति अपार,
विज्ञान की समझ, चिकित्सा का आधार।
स्नेह, सामर्थ्य, और समुदाय का सहारा,
फिर भी क्यों है जीवन दुख का कुहासा।

सत्यं शिवं सुंदरं का पाठ है भूला,
आधुनिक मानव ने लोभ का जाल है बुना।
विनाश के मार्ग पर बढ़ते हैं पग-पग,
स्वर्ग धरती पर बना सकते थे, पर ये छल का चक्र।

जिन्हें होना था दीपक, वो बन गए अंधकार,
जिनके हाथों में शासन, वे हैं ज्ञान से लाचार।
न्याय और धर्म का जिनको होना था रखवाला,
वे बन गए अधर्म के प्रतिमान, पथभ्रष्ट करने वाला।

मनुजत्व का मार्ग, करुणा का सहारा,
विज्ञान से सृजन हो, न हो विध्वंस का नारा।
पर जिनकी दृष्टि छोटी, जिनका हृदय संकीर्ण,
वे करते हैं निर्णय, और जगत बनता है पीड़ित।

योग का यह देश, जहाँ था ध्यान का वास,
अब बन चुका है लालच का उपहास।
जिन्हें होना था नायक, वे बने भ्रष्टाचार के साथी,
मानवता कराह रही, जैसे मछली बिना पानी।

संघर्ष का आह्वान है, जागो हे मानव,
अपनी शक्ति को पहचानो, बनो धर्मावतार।
विज्ञान और आध्यात्म का हो मिलन,
तभी होगा सृजन, और मानव स्वर्ग का चिंतन।

जब नेतृत्व में आएंगे ज्ञानी और धीर,
तभी कटेगा दुखों का अंधकार का नीर।
आओ, सत्य और प्रेम का दीप जलाएं,
मानवता को स्वर्ग की ओर ले जाएं।


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