प्रतीक्षा का अंत


प्रतीक्षा का अंत

संसार में मेरे जाने के बाद,
तुम आएगे मेरे पास, मन में याद।
तो क्यों न आज ही कुछ पल बिताएं,
मधुर संवाद से हृदय को सजाएं।

क्षमा का सागर बहा दो अभी,
जीवन क्षणिक है, इसकी हो दृष्टि सही।
कह दो वे शब्द जो सुनना चाहूँ,
जिनसे मेरा अंतर्मन सदा चाहूँ।

आज ही संग बैठो, कर लो बातें,
क्योंकि प्रतीक्षा में कभी देर हो जाती है, जीवन में।



जब मैं चला जाऊँगा, आएगा ध्यान तुम्हें,
बुझी सी शमा में जलाओगे प्रेम की लौ।
मेरी स्मृतियों में खोजोगे मुझे,
फिर सोचेगा मन, क्यों न बात की हो थोड़ी और।

जब मैं चला जाऊँगा, मेरी भूलों को माफ करोगे,
उन बातों को क्षमा करोगे, जिनसे मैं अनजान था।
तो क्यों न आज ही प्रेम का सागर बहा दो,
क्षमा का आशीष दे दो, मन को शांत कर दो।

कह दो वो बातें, जिनसे खिल उठे मन,
जिन्हें सुनने की प्रतीक्षा में हूँ मैं आज भी।
प्रेम की उन मधुर लहरों में बहा दो मुझे,
सुन लो मेरे अंतर्मन की पुकार को।

क्यों न आज बैठें कुछ क्षण साथ,
सुख-दुख के अनुभव बाँट लें।
इस जीवन की क्षणभंगुरता में,
मिल जाए कुछ अमरता का बोध, संतोष का साथ।

प्रतीक्षा का अंत करो आज ही,
क्योंकि समय का प्रवाह थमता नहीं।
जीवन की इस अनिश्चित राह पर,
प्रेम से भर लो आज का दिन,
क्योंकि कल की कोई गारंटी नहीं।


No comments:

Post a Comment

thanks

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा के इस वीराने में   दिल का दरिया बहक रहा है,   तृष्णा के इस नशे में खोकर   हर इक सपना भटक रहा है।   आस का दीप बुझने को है,   साँस क...