जब कुछ पुरानी खट्टी यादें
चासनी बनकर मुंह पर आ जाए
तो फिर क्या कहने
याद है वो गहरी खाइयां
जो हमने अपने लिए खींची थी.
देखो तो जरा वक़त के थपेड़ों ने भर दी
वो खाइयां
एहसास हुआ है जो आज
तब न ऐसा एहसास हुआ था
जब तुम्ही ने कहा था
की वक़त जवाब देता है.
मांगू क्या मैं उससे जो मुझसे मांगने आया है
दूँ क्या मैं उसे जिसे मैं अपना सब कुछ दे चूका
है क्या वो आखिर जिसे न लिया जा सकता है
न किसी को दिया जा सकता है
चासनी बनकर मुंह पर आ जाए
तो फिर क्या कहने
याद है वो गहरी खाइयां
जो हमने अपने लिए खींची थी.
देखो तो जरा वक़त के थपेड़ों ने भर दी
वो खाइयां
एहसास हुआ है जो आज
तब न ऐसा एहसास हुआ था
जब तुम्ही ने कहा था
की वक़त जवाब देता है.
मांगू क्या मैं उससे जो मुझसे मांगने आया है
दूँ क्या मैं उसे जिसे मैं अपना सब कुछ दे चूका
है क्या वो आखिर जिसे न लिया जा सकता है
न किसी को दिया जा सकता है
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