Thursday 31 January 2019

है क्या वो

जब कुछ पुरानी खट्टी यादें
चासनी बनकर मुंह पर आ जाए
तो फिर क्या कहने
याद है वो गहरी खाइयां
जो हमने अपने लिए खींची थी.
देखो तो जरा वक़त के थपेड़ों ने भर दी
वो खाइयां
एहसास हुआ है जो आज
तब न ऐसा एहसास हुआ था
जब तुम्ही ने कहा था
की वक़त  जवाब देता है.
मांगू क्या मैं उससे जो मुझसे मांगने आया है
दूँ क्या मैं उसे जिसे मैं अपना सब कुछ दे चूका
है क्या वो आखिर जिसे न लिया जा सकता है
न किसी को दिया जा सकता है

No comments:

Post a Comment

thanks

दीप जले तो जीवन खिले

अँधेरे में जब उम्मीदें मर जाएं, दुखों का पहाड़ जब मन को दबाए, तब एक दीप जले, जीवन में उजाला लाए, आशा की किरण जगमगाए। दीप जले तो जीवन खिले, खु...