मैंने जाना,
सुख-दुख की डोर
मेरे ही हाथों में है।
जैसे सागर में जल का प्रवाह,
वैसे ही मेरे चुनाव
निर्धारित करते हैं मेरी राह।
अपनी शक्ति का एहसास,
मुझमें भरता है प्रकाश।
जो बोझ थे दूसरों की अपेक्षाओं के,
उन्हें उतार फेंका मैंने।
अब मैं हूँ स्वतंत्र,
खुद की भूमि पर खड़ा।
जीवन का अर्थ,
मैं खुद गढ़ता हूँ।
हर अनुभव, हर क्षण,
मेरे द्वारा रचित है।
यह स्वीकृति, यह विश्वास,
मुझे देती है नया प्रकाश।
अब मैं अपना सूरज हूँ,
अपना चाँद, अपनी रातें।
अपना संगीत, अपना स्वर,
अपनी मंज़िल, अपनी बात।
जो भी करूँ,
वह मेरी आत्मा से उपजा हो।
और जो भी कहूँ,
वह सच्चाई की राह दिखाए।
इस सत्य के संग,
मैं जीता हूँ पूर्ण,
अपने आप में परिपूर्ण।
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