मैं किसी भीड़ का हिस्सा नहीं,
न किसी झंडे के रंग में बंधा हूँ।
न कोई जाति, न कोई मज़हब,
सिर्फ अस्तित्व का अंश हूँ।
मैं संपूर्ण सृष्टि से जुड़ा हूँ,
सागर की लहरों में बहता हूँ।
क्यों समेटूँ खुद को सीमाओं में,
जब अनंत आकाश मेरा घर है?
छोटे दायरों में क्यों रहूँ,
जब सम्पूर्णता मेरी प्रकृति है?
जो लिपटा है नामों में, सीमाओं में,
वो सागर छोड़ बूंद में खोया है।
मैं विराटता का एहसास हूँ,
हर धड़कन में नृत्य करता हूँ।
सागर हूँ, उन्मुक्त बहता,
हर कण में स्वयं को जीता हूँ।
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