क्रंदन की जंजीर



मैंने देखा उन्हें,
जो शब्दों में अश्रु भरते हैं,
हर कठिनाई को विलाप में गूँथते हैं,
मानो जीवन कोई अन्याय हो।

मैंने सुना उन्हें,
जो सदा शिकायत का राग अलापते हैं,
जैसे संसार ने केवल उनके साथ
अविश्वास का संकल्प लिया हो।

पर मैं क्यों गिरूँ उस अंधेरे में?
क्यों बनाऊँ दुःख को अपना संगीत?
मैं जो हूँ, वह संघर्ष से बना है,
ना कि करुणा की भीख से।

पीड़ा आएगी, उसे मैं अंगीकार करूँगा,
पर उसे ढाल नहीं बनाऊँगा।
मैं उठूँगा, अपने ही भार से,
ना कि किसी और के कंधों पर।

क्योंकि क्रंदन केवल जंजीर है,
और मैं मुक्त होने को जन्मा हूँ।


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