परिवर्तन की ज्वाला



मैंने देखा उन्हें,
जो संसार की लकीरों में चलते रहे,
जो आदेशों को सत्य मानते रहे,
और परिवर्तन की आस में मिटते रहे।

पर क्या कोई सूरज यूँ ही चमका?
क्या कोई पर्वत यूँ ही उठा?
जो चले रास्तों पर बनाए हुए,
वे कभी नए पथ नहीं गढ़ पाए।

मैं जो हूँ, वह अपनी ज्वाला से हूँ,
संसार की छाया से नहीं।
यदि मुझे बदलना है,
तो पहले इस व्यवस्था से टकराना होगा।

जो कहा गया, वही करता रहूँ,
तो मैं केवल एक प्रतिध्वनि हूँ।
पर मैं नाद बनना चाहता हूँ,
जो मौन को चीरकर गूँज उठे।

संसार नहीं चाहता विद्रोही,
पर इतिहास उन्हीं का होता है।
मैं आदेशों की बेड़ियाँ तोड़ूँगा,
क्योंकि परिवर्तन केवल स्वतंत्रता से जन्मता है।


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