मदद का असल रूप




यह नहीं कि तुम स्वार्थी हो,
कभी मदद करनी है, कभी नहीं।
जब दिल से करना हो मदद,
तभी मदद की राह पर चलो, बिना किसी अंतर के।

यह नहीं कि बीच का कोई रास्ता है,
या तो तुम हो, या नहीं हो।
जब किसी को देना हो सहारा,
तो पूरे दिल से देना चाहिए, बिना किसी शक के।

मदद सिर्फ बातों में नहीं होती,
कभी पूरी तवज्जो से, कभी नासमझी से।
जो दिल से मदद करना चाहते हैं,
वो किसी भी परिस्थिति में खुद को न रोकें।

और जब तुम खुद न चाहो,
तो न करना ही बेहतर है।
क्योंकि अधूरी मदद कभी नहीं बनती,
कभी भी किसी को असमर्थ महसूस करवा देती है।

मदद या तो हो पूरी, या बिल्कुल नहीं,
यहां कोई बीच का रास्ता नहीं।
सच यही है, जो दिल से नहीं कर सकते,
वो मदद के नाम पर खुद को नहीं बहलाएं।

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