open sex end



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"काम एक ऊर्जा है – suppressed हो तो विनाश लाती है, समझी जाए तो साधना बन जाती है।"
– ओशो


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प्रस्तावना: एक अद्भुत यात्रा का अंत, या एक नई शुरुआत?

23 भागों की इस लंबी और गहन सीरीज़ के बाद, आज जब मैं यह अंतिम लेख लिख रहा हूँ, तब तारीख है 25 मई।
तारीख सिर्फ एक दिन नहीं, बल्कि एक अहसास है — कोविड लॉकडाउन का समय, जब पूरी दुनिया ठहरी हुई थी।
लोग अपने घरों में बंद थे, डर और असुरक्षा की चादर ओढ़े हुए। और उस समय, "सेक्स" नामक वह स्वाभाविक इच्छा — जो एक सामान्य दिनचर्या में सहज थी —
वो भी घुटने लगी।


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कोविड लॉकडाउन और सेक्स – जब इच्छाएं भी क्वारन्टीन में चली गईं

सेक्स हमेशा से दो शरीरों का नहीं, दो चेतनाओं का मिलन रहा है। लेकिन कोविड के समय:

न सोशल इंटरैक्शन,

न डेटिंग,

न फिजिकल एक्सप्रेशन।


लोग अपनी इच्छाओं के साथ अकेले पड़ गए।
Open Sex जैसे प्रयोगात्मक विचार — जिनके बारे में मैंने इस सीरीज़ में लिखा — वो भी ठहर गए।
शरीर को छूने की आज़ादी खत्म हुई। लेकिन शायद…
आत्मा को छूने का मौका मिला।


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23 भागों की श्रृंखला — विषय और उद्देश्य

इस श्रृंखला में हमने explore किया:

Open Sex

Open Marriage

Swingers

Group Sex

Pansexuality

Bisexuality

Asexuality

Spiritual Sex

Tantric Union

Gender Fluidity

Lust vs Love

और सबसे महत्वपूर्ण — मानव मन की गहराइयाँ।


ये लेख केवल सेक्स की बात नहीं कर रहे थे।
ये "Sex ke बहाने आत्मा की यात्रा" थे।
जैसे ओशो कहते हैं:

> "सेक्स ही शुरुआत है — मगर अगर ठीक से जिया जाए, तो वही समाधि की सीढ़ी बनता है।"




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मैंने क्या सीखा इस यात्रा से?

1. काम वर्जित नहीं है — वह जीवन ऊर्जा है।
उसे समझने से जीवन खिलता है, न कि उसे दबाने से।


2. हर इंसान की यौनिकता अलग है — और सबकी अपनी जगह पर सच्ची है।
चाहे कोई bisexual हो, pansexual हो, या asexual — सबका अनुभव मूल्यवान है।


3. सत्य आत्मा में है, शरीर में नहीं।
कई बार जो संबंध शारीरिक नहीं हो पाते, वे मानसिक रूप से अधिक शक्तिशाली बन जाते हैं।




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कोविड और सेक्स: आंतरिक मिलन की संभावना

जब बाहर का मिलन असंभव हो गया, तो हमने भीतर झाँकना शुरू किया।
Meditation, self-love, fantasy और imagination — ये सब उस वक्त के माध्यम बने।

कई लोगों ने पहली बार masturbation को शर्म नहीं, ज़िम्मेदारी की तरह समझा।
कई कपल्स ने पहली बार slow sex, mindful touch या tantric breathing को अपनाया।

कोविड ने हमसे हमारी आज़ादी छीनी, लेकिन शायद हमारी चेतना लौटा दी।


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एक निजी स्वीकारोक्ति

इस पूरी सीरीज को लिखते हुए मैंने अपने मन के कई गहरे हिस्सों को छुआ —
कभी संकोच हुआ, कभी पाप-बोध आया, तो कभी आज़ादी की महक मिली।

मैंने मुंबई, पुणे, रिषिकेश जैसे शहरों में जो अनुभव किए —
Open thinking, Osho commune, diverse people —
उन सबका सार इन पन्नों पर उतारा।


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आख़िरी सवाल: ये सब लिखकर क्या पाया?

शायद किसी का दिमाग खुले।
शायद कोई अकेला न महसूस करे।
शायद कोई shame छोड़ दे।
शायद सेक्स के ज़रिये प्रेम को, और प्रेम के ज़रिये आत्मा को छू ले।


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यह यात्रा खत्म नहीं हुई, बस एक दिशा बदली है।
अब जिस "open" की बात होगी — वो शरीर से ज़्यादा हृदय का होगा।
अब जिस "sex" की बात होगी — वो सिर्फ कामना नहीं, एक करुणा होगी।

> "जब सेक्स से प्रेम जन्म लेता है, और प्रेम से ध्यान –
तब इंसान पापी नहीं, पूज्य हो जाता है।"


"काम से ध्यान तक: एक साधक की सेक्स यात्रा"
मुझे बस कहना है, मैं साथ हूँ।

– लेखक




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