Open Sex Series – Part 20 - 2


(Poetic-Reflective Edition)

"Bandhan ke Pare – Ek Raat, Ek Sach"

एक चमकदार रात थी वो, जुहू की गलियों में,
जहाँ रिश्ते शराब के पैग से नहीं, नीयत के इरादों से बहकते हैं।
जहाँ प्यार की परिभाषा सिर्फ़ ‘तेरा’ और ‘मेरा’ नहीं,
बल्कि ‘हम’ और ‘उनका’ मिलकर एक नई कहानी कहते हैं।


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"कौन हैं ये लोग?"
मैंने ख़ुद से पूछा —
जो अपनी पत्नियों को थमाते हैं किसी और के हाथ,
और लौटते हैं उसी बाहों में जैसे कुछ बदला ही नहीं।

"ये मोह है या मोक्ष?"
शायद दोनों के बीच की कोई धुंधली लकीर,
जिस पर चलने के लिए
ज़रूरत है हिम्मत की, ईमानदारी की — और बेपनाह समझ की।


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नील और तान्या
एक कपल, एक philosophy।
जहाँ jealousy थी —
पर उससे भी बड़ी थी intimacy।
जहाँ दूरी थी —
पर उससे भी गहरी थी बातों की नज़दीकी।

> “हमने प्यार को पिजरे में नहीं रखा,”
तान्या ने कहा।
“उसे हवा दी, धूप दी, और देखा वो कैसे उड़ता है... पर लौटकर आता है।”




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ओशो की बातें कानों में गूंजीं...

> "Sex को डर की नज़रों से मत देखो,
उसे चेतना की आंख से देखो।
तब वो पाप नहीं, परमात्मा बन जाएगा।"




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मैं देखता रहा...
उन रेत जैसे रिश्तों को,
जो छूने पर फिसलते हैं
पर समंदर से मिल जाएं तो
एक नई दुनिया बना सकते हैं।


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Swingers की ये दुनिया
कोई ‘चाल’ नहीं,
ये एक ‘चयन’ है —
जैसे कोई संत जंगल छोड़कर नग्नता चुन लेता है,
वैसे ही ये लोग कपड़ों में रहते हुए भी
रिश्तों को उघाड़ देते हैं।


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मैंने जाना —
Sex केवल शरीर नहीं होता।
Desire केवल गुनाह नहीं होती।
और शादी केवल पवित्रता का मंडप नहीं —
कभी-कभी समझ का बंधन भी बन सकती है।


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तो क्या ये सब सही है?
शायद नहीं।
क्या ये सब गलत है?
शायद वो भी नहीं।

यह बस एक तरीका है जीने का,
जहाँ प्यार और sex की परिभाषाएं,
किसी dictionary में नहीं —
बल्कि दिल की धड़कनों और एक-दूसरे की आँखों में लिखी जाती हैं।


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और मैं?
मैं अब भी वही हूं —
देखने वाला, सुनने वाला,
समझने वाला।

पर अब मैं किसी को जज नहीं करता।
क्योंकि हर दिल की अपनी भूख होती है —
और हर रिश्ते की अपनी रोटी।


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