सीमाएँ मेरे संग



मैं चलता हूँ, ठहरता नहीं,
जो बीत गया, उसे पकड़ता नहीं।
शब्दों पर नहीं, कर्मों पर विश्वास,
वादा कोई भी हो, हो उसमें प्रकाश।

नए चेहरे, नए रास्ते खुलते हैं,
मन के द्वार अब संकुचित नहीं।
स्वागत करता हूँ हर नई रौशनी का,
जो प्रेम दे, जो सच्चा हो वही सही।

क्षणिक सुखों से ऊपर उठकर,
आज कठिन राहें चुनता हूँ।
कल जो चाहा था, वह पाऊँ,
खुद से जो वादा किया, वह निभाता हूँ।

मैं अपनी सीमाओं का प्रहरी,
न दुराग्रह, न मोह की डोरी।
खुद से किया हर संकल्प निभाऊँ,
अपने पथ पर अडिग रह जाऊँ।


No comments:

Post a Comment

Thanks

हनुमान जी के विभिन्न स्वरूप: शक्ति और भक्ति के प्रतीक

भगवान हनुमान केवल एक भक्त ही नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और ज्ञान के साकार रूप हैं। उनके विभिन्न रूपों का वर्णन पुराणों और ग्रंथों में मिलता है...