मैंने देखा उन्हें, जो चाहें गए,
बस आकर्षण के धागों में बंधे रहे।
देह की चमक में उलझे हुए,
मन की खामोशी को पढ़ न सके।
जब जिस्म का जादू उतर गया,
तो हाथों में शून्य ही रह गया।
बातें अधूरी, खामोशियाँ भारी,
क्योंकि आत्मा की भाषा सीखी नहीं।
गहराई माँगने से नहीं आती,
वो तो सोच में बसती है।
जिसकी आँखों में सवाल उठते हों,
जिसके शब्दों में अर्थ बसते हों,
वो ही प्रेम को थाम सकता है।
जिस्म बुला सकता है,
पर थामने का हुनर चाहिए।
जो पल को जी सके,
जो मौन को पढ़ सके,
वो ही साथ निभा सकता है।
अगर देह के बिना सब सूना लगे,
तो शायद रिश्ता कभी था ही नहीं।
क्योंकि प्रेम, वो नहीं जो बुलाए,
बल्कि वो है जो रुक जाए।
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