मैंने देखा उन्हें,
जो बस जिस्म की ख्वाहिश में खोए रहे,
जो सौंदर्य की आग में जले,
पर आत्मा की रोशनी तक न पहुंचे।
वे आकर्षण को ही प्रेम समझ बैठे,
क्योंकि यही सीखा था, यही पाया था।
जब जिस्म का जादू उतर गया,
तो उनके पास कुछ भी न बचा था।
मैंने सोचा, प्रेम क्या है?
क्या वो बस अधरों की प्यास है?
या वो मौन में बहता संवाद,
जो स्पर्श से परे भी सांस है?
गहराई माँगने से नहीं आती,
वो जन्मती है सोच में, चलन में।
शरीर बुला सकता है किसी को,
पर रोकता केवल अस्तित्व है।
बैठ सकूं तेरे संग चुपचाप,
हर लम्हा महसूस कर सकूं।
अगर प्रेम सिर्फ जिस्म था,
तो बिना उसके क्या शेष रह सकूं?
अगर सबकुछ खाली लगे वासना के बिना,
तो बंधन कभी सच्चा था ही नहीं।
क्योंकि प्रेम देह में नहीं बसता,
वो आत्मा की गहराइयों में जिंदा रहता है।
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