ध्यान यकीनन ले जाता है मन से परे,
जैसे हर नदी पहुँचती है सागर के द्वार।
न कोई नक्शा, न कोई मार्गदर्शक,
हर नदी, बिना अपवाद, अंततः पहुँचती है सागर तक।
हर ध्यान, बिना किसी अपवाद के,
अंततः पहुँचता है शून्य मन की स्थिति तक।
ध्यान का यह सफर, निरंतर बहता,
हर मन में, शांति का सागर समेटता।
जैसे नदी की धारा, निरंतर बहती,
हर मोड़ पर, हर पत्थर से कहती।
मन भी ध्यान में, निरंतर बहता,
हर सोच से मुक्त, शून्य में डूबता।
ध्यान का मार्ग, सागर की ओर ले जाता,
हर नदी की तरह, अंततः शांति पाता।
मन का यह सफर, ध्यान में सिमटता,
हर ध्यान का लक्ष्य, शून्यता में मिलता।
No comments:
Post a Comment
thanks