कई महिलाएं रिश्तों में अपनी ओर से ढलने को तैयार होती हैं,
यदि आप उन्हें अपनी पसंद और नापसंद बताएं,
वो उसे अपनाने की कोशिश करती हैं,
चाहे वह पहले कभी नहीं किया हो।
उनकी चाहत होती है रिश्ते को बनाकर रखना,
उनकी समझ में होता है कि बदलाव,
रिश्ते को और मजबूत बना सकता है।
लेकिन ज़्यादातर पुरुष स्थिर रहते हैं,
वे खुद को उसी रूप में पसंद करते हैं,
और रिश्ते के लिए बदलाव लाने में हिचकिचाते हैं।
वे इसे किसी तरह की कमजोरी नहीं समझते,
बल्कि यह उनके स्वभाव का हिस्सा बन जाता है,
कि उन्हें जैसे हैं वैसे ही स्वीकार किया जाए।
क्या यह फर्क,
हमारे दृष्टिकोण में ही छिपा है?
क्या महिलाएं प्यार के नाम पर खुद को बदलने के लिए तैयार होती हैं,
जबकि पुरुष अपनी जगह पर स्थिर रहते हैं,
क्योंकि उन्हें अपनी पहचान में कोई बदलाव पसंद नहीं?
कभी लगता है,
क्या यह स्थिरता और लचीलापन
हमारे रिश्तों को सही दिशा में ले जाते हैं,
या फिर यह दोनों के बीच की दीवार बन जाती है?
क्या एक-दूसरे के बदलाव की चाहत
वास्तव में प्यार को और गहरा करती है?
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