लेखन से दूरी का जादू



मैंने जाना,
कभी-कभी खुद को लेखन से अलग करना,
लेखन को और बेहतर बनाता है।
शब्दों के शोर से दूर जाकर,
खामोशी में नया अर्थ मिल जाता है।

पहले मैं हर बात को एक ही तरह से लिखता था,
हर नोट, हर विचार जैसे बंधा हुआ था।
अब मैंने तरीका बदला है,
और लगता है, ये बदलाव मेरे हक में है।

स्क्रिप्ट पढ़ता हूं,
हर शब्द के साथ बहता हूं।
विशिष्ट नोट्स लिखता हूं पहले,
सामान्य विचारों को छोड़ देता हूं पीछे।

जब सब कुछ लिख चुका होता हूं,
एक लंबी सैर पर निकल पड़ता हूं।
उस चलने की लय में,
वो स्पष्टता आती है, जिसकी तलाश थी।

हर कदम जैसे नया रास्ता दिखाता है,
हर सांस में सोच साफ़ हो जाती है।
फिर लौटकर,
मैं अपने विचारों को सही स्वरूप देता हूं।

यह दूरी नहीं,
यह एक तैयारी है।
जो मेरे लेखन को
और अधिक गहराई देती है।


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