डेडलाइन की रेस में हम सब भाग रहे हैं,
समय की हर इक बूंद को हम निचोड़ रहे हैं।
कागजों पर चल रही कलम की रफ्तार,
जैसे कोई धावक हो, दौड़ता बेजार।
सपनों के सागर में हम तैरते हैं,
लेकिन डेडलाइन के खंजर से घबराते हैं।
हर पल की गिनती में धड़कनें तेज होती हैं,
काम की चिंताओं में रातें भी खोती हैं।
दिमाग की गलियों में विचारों का शोर,
डेडलाइन के आगे सब कुछ लगता है कठोर।
लेकिन जब मंज़िल का होता है दीदार,
मेहनत का हर लम्हा लगता है बेकार।
क्योंकि डेडलाइन की रेस में जीत वही पाता है,
जो धैर्य और हिम्मत से, हर बाधा को मात दे जाता है।
No comments:
Post a Comment
thanks