फिर से उठ, बन शिकारी!


गिरा था, तो क्या हुआ?
आसमान भी कभी झुका?
ये जो जिद है, तेरी पहचान,
हिम्मत के संग बढ़ा तू इंसान।

पिछली बार जो हुआ अधूरा,
इस बार हो मुकाम पूरा।
आधे मन से काम नहीं,
अब दांव पे सबकुछ सही।

सोच, जो तू छोड़ेगा,
दुनिया कैसे तोड़ेगा?
हंसी में तेरा नाम हो,
मंज़िल तेरा गुलाम हो।

"रूठा है समय तो क्या,
फिर से बुलाएगा ये, बना सवेरा नया।"
कदम बढ़ा, बन तू निडर,
राह रोक सके न कोई पत्थर।

जोश ऐसा, जैसे तूफान,
बचने का दे न किसी को सामान।
मस्त चाल, आंखों में शेर,
अबकी बार खुदा भी तेरा फेर।

तो चल, मत देख पीछे,
आसमान को बना अपना नीचे।
इस बार जो ताने सुने,
उनको बना जीत के गहने।

रुकना नहीं, झुकना नहीं,
तूफानों से अब चूकना नहीं।
फिर से उठ, बन शिकारी,
तेरा नाम हो कहानी सारी।


No comments:

Post a Comment

Thanks

अखंड, अचल, अजेय वही

अखंड है, अचल है, अजेय वही, जिसे न झुका सके कोई शक्ति कभी। माया की मोहिनी भी हारती है, वेदों की सीमा वहाँ रुक जाती है। जो अनादि है, अनंत है, ...