प्रेम तंत्र २



प्रेम ही सच्चाई है, प्रेम ही है दीप,
जहां कामुकता छूटे, वहां तन-मन का सुकून मिलीप।

तंत्र की यह राह, शुद्धता का आह्वान,
जहां देह मात्र माध्यम हो, और आत्मा बने प्रधान।

न स्पर्श में वासना, न दृष्टि में लालसा,
यह वह दिव्यता है, जहां तृप्ति बने परिभाषा।

प्रेम की गहराई में, आत्माओं का मिलन,
शुद्ध, पवित्र, अनछुआ, यह है तंत्र का दर्शन।

जैसे पुष्प की गंध, वायु में घुल जाए,
वैसे ही प्रेम का सार, तंत्र में लहराए।

तोड़ दे हर बंधन, देह का मोह,
तब ही होगा संभव, तंत्र का सच्चा बोध।


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"प्रेम का दिव्यता रूप"

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