प्रेम - तंत्र ३



प्रेम ही है असली जीवन की गाथा,
जहाँ तन और मन बन जाए एक साथा।
कामना जब शून्य में खो जाती है,
तब आत्मा की गहराई जाग जाती है।

संगम हो जहां बिना वासना के,
हर स्पर्श बन जाए ध्यान का ध्येय।
जिसमें हो शुद्धता और दिव्यता,
वहीं तंत्र की सच्ची महिमा।

प्रेम नहीं सीमित शब्दों में,
वह तो है अमर, हर स्पंदन में।
जहाँ भावनाएँ हों स्वच्छ और निर्मल,
वहीं प्रकट होता है प्रेम का असल।

तंत्र नहीं केवल यौगिक साधना,
यह तो है आत्मा की भावना।
जहाँ प्रेम हो केवल प्रेम,
वहीं खिलता है जीवन का सेम।


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"प्रेम का दिव्यता रूप"

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