पृथ्वी की संरक्षा: मानवता का कर्तव्य

**पृथ्वी की संरक्षा: मानवता का कर्तव्य**

मानव जाति के लिए पृथ्वी की संरक्षा एक महत्वपूर्ण कर्तव्य है। हमें इस संरक्षा के लिए समर्पित रहना चाहिए ताकि हम समृद्धि और खुशहाली के साथ इस अनमोल संसाधन का आनंद ले सकें।

वेदों में दी गई नमनयात्रा और प्रार्थनाएँ हमें प्रेरित करती हैं कि हम पर्वत, पहाड़ी, और पृथ्वी की संरक्षा के लिए समर्पित रहें। हमें यह समझना चाहिए कि हमारे द्वारा किए गए कार्य और व्यवहार का पृथ्वी पर क्या प्रभाव पड़ता है, और हमें उसकी संरक्षा के लिए सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए।

**संस्कृत श्लोक:**

"धरा शान्तिः, अन्तरिक्षं शान्तिः,  
द्यौः शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः।  
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः,  
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः, सा मा शान्तिरेधि।" 

यह श्लोक हमें पृथ्वी की संरक्षा के लिए सदा शांति की प्रार्थना करने का आदर्श देता है। हमें पर्वतों, पहाड़ों, और पृथ्वी की सभी प्राकृतिक संरचनाओं की संरक्षा के लिए सक्रिय रूप से योगदान देना चाहिए, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को भी इस शांतिपूर्ण और समृद्ध वातावरण का आनंद लेने का अवसर मिल सके।

No comments:

Post a Comment

thanks

श्वासों के बीच का मौन

श्वासों के बीच जो मौन है, वहीं छिपा ब्रह्माण्ड का गान है। सांसों के भीतर, शून्य में, आत्मा को मिलता ज्ञान है। अनाहत ध्वनि, जो सुनता है मन, व...