उच्चता जिसकी आप तलाश कर रहे हैं वह आत्मज्ञान है

## उच्चता जिसकी आप तलाश कर रहे हैं, वह पदार्थ, सफलता, लोकप्रियता, लोग, बौद्धिक उपलब्धि, सामाजिक गतिविधि या पशुवादी सुख नहीं है

### उच्चता जिसकी आप तलाश कर रहे हैं वह आत्मज्ञान है

हम सभी जीवन में किसी न किसी उच्चता की तलाश में रहते हैं। कई लोग इसे पदार्थों में, सफलता में, लोकप्रियता में, लोगों में, बौद्धिक उपलब्धियों में, सामाजिक गतिविधियों में या फिर पशुवादी सुखों में तलाशते हैं। लेकिन वास्तविक उच्चता इनमें से किसी में नहीं है। वास्तविक उच्चता आत्मज्ञान में है।

### आत्मज्ञान क्या है?

आत्मज्ञान का अर्थ है अपने सच्चे स्वरूप को जानना। यह वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति अपने अंदर की दिव्यता को पहचानता है और जीवन के सभी प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करता है। यह वह स्थिति है जब व्यक्ति दुनिया के सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और एक अनंत शांति और आनंद की अनुभूति करता है।

### संस्कृत श्लोक:

```
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरुर्पदम्।
मन्त्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरुर्कृपा॥
```

इस श्लोक का अर्थ है कि ध्यान का मूल गुरु की मूर्ति है, पूजा का मूल गुरु का पद है, मंत्र का मूल गुरु का वाक्य है, और मोक्ष का मूल गुरु की कृपा है।

### आत्मज्ञान की प्राप्ति कैसे करें?

आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए सबसे पहले अपने भीतर की ओर ध्यान देना आवश्यक है। यह कुछ चरणों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है:

1. **ध्यान और साधना**: ध्यान और साधना के माध्यम से व्यक्ति अपने मन को शांत करता है और अपने अंदर की आवाज को सुनता है।

2. **शास्त्रों का अध्ययन**: वेद, उपनिषद, गीता आदि शास्त्रों का अध्ययन करने से व्यक्ति को आत्मज्ञान के महत्व और उसे प्राप्त करने के मार्ग का ज्ञान होता है।

3. **सद्गुरु की खोज**: सद्गुरु की मार्गदर्शन से आत्मज्ञान की प्राप्ति सुगम हो जाती है। सद्गुरु वह होता है जो स्वयं आत्मज्ञानी होता है और दूसरों को भी इस मार्ग पर ले जाता है।

4. **स्वयं का अवलोकन**: व्यक्ति को अपनी कमजोरियों, गलतियों और भ्रमों को पहचानना और उन्हें सुधारना आवश्यक है।

### निष्कर्ष

संसार के सभी सुख और सफलताएं क्षणिक हैं। असली सुख और शांति आत्मज्ञान में ही है। यह वह उच्चता है जिसकी हमें वास्तव में तलाश होनी चाहिए। इस मार्ग पर चलकर ही हम अपने जीवन को सच्चे अर्थों में सार्थक बना सकते हैं।

```
असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मामृतं गमय॥
```

(हमें असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो।)

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