अखंड, अचल, अजेय वही



अखंड है, अचल है, अजेय वही,
जिसे न झुका सके कोई शक्ति कभी।
माया की मोहिनी भी हारती है,
वेदों की सीमा वहाँ रुक जाती है।

जो अनादि है, अनंत है, पूर्णतम,
शांत है, शाश्वत है, दिव्यतम।
सबसे ऊपर, परम से भी परे,
उस ब्रह्म में शरण मेरी सदा रहे।

न दीप की लौ, न शब्दों की रीत,
न मन की गति, न तर्कों की जीत।
जो समझ से परे, जो दृष्टि से दूर,
वह सत्य है, वही शुद्ध, वही सूर।

उसकी महिमा का कैसे वर्णन करूँ?
शब्द असमर्थ, मैं कैसे उसे धरूँ?
बस सिर झुकता है, हृदय गा उठता है,
"हे ब्रह्म, तू ही मेरा सब कुछ है।

No comments:

Post a Comment

Thanks

अखंड, अचल, अजेय वही

अखंड है, अचल है, अजेय वही, जिसे न झुका सके कोई शक्ति कभी। माया की मोहिनी भी हारती है, वेदों की सीमा वहाँ रुक जाती है। जो अनादि है, अनंत है, ...