अहंकार का बोझ सिर पर भारी,
दूर कर देता वह प्रभु की सवारी।
दरवाज़ा तो खुला है प्रभु के धाम का,
पर झुकना होगा, यही है काम का।
विनम्रता कमजोर नहीं, यह तो है साहस,
हर जीव में ब्रह्म का सम्मान, यह है अभ्यास।
झुकने में ही सत्य का दर्शन,
हर कण-कण में ब्रह्म का वंदन।
क्यों चिंता करूं औरों के कर्मों की,
फल तो मिलेगा केवल अपने धर्मों की।
यह सृष्टि का नियम, न बदलेगा कभी,
जैसा किया, वैसा भोगेगा सभी।
प्रभु कहते हैं, कर्म की राह पकड़,
और छोड़ दे चिंता, जो दिल में जकड़।
जो करेगा वही पाएगा, यह जीवन का सत्य,
अहंकार से मुक्त हो, यही है श्रेष्ठ।
- दीपक डोभाल
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