जब नींद अभी आई नहीं, जागरण विदा हुआ,
उस क्षण में मैंने स्वयं को महसूस किया।
न सोया था, न जागा था मैं,
बस उस मध्य बिंदु पर ठहरा था मैं।
तन शिथिल, मन शांत, सब रुक गया,
अंतर में एक अद्भुत प्रकाश जगमगाया।
सांसें थमीं, समय ठहर गया,
उस पल का अनुभव मेरे भीतर उतर गया।
सुबह की पहली रेखा के संग,
या रात की गहराई का अंतहीन प्रसंग।
दो अवस्थाओं के बीच का वह लम्हा,
जैसे मिल गया हो मुझे जीवन का गहना।
हर दिन मैंने उस क्षण की प्रतीक्षा की,
आंखें मूंद, बस भीतर की साधना की।
शरीर भारी हुआ, मन स्थिर हुआ,
उस मध्य बिंदु ने मुझे भीतर से छुआ।
मैं गिरा, दो पहाड़ियों के बीच खाई में,
पर वह गिरना नहीं, उठना था आत्मा में।
न जीवन का भय, न मृत्यु का भार,
बस सत्य का अनुभव, वही मेरा संसार।
मैं जागा, पर नींद में था,
मैं सोया, पर जागरण में था।
उस तीसरे बिंदु ने सत्य दिखाया,
मुझे मेरा असली स्वरूप समझाया।
तंत्र कहता है, "जागो उस क्षण पर,"
जहां दो अवस्थाओं का टूटे बंधन।
मैंने उस कुंजी को पा लिया,
अंतराल में आत्मा का द्वार खोल लिया।
"जब नींद और जागरण का पुल बना,
उस मध्य बिंदु पर मैं स्वयं को जाना।
तब जाना, 'मैं कौन हूं' का अर्थ,
मेरा सत्य, मेरा अस्तित्व, मेरा स्वार्थ।"