न विज्ञान, न तकनीक की रेखा,
सच्ची उन्नति तो है चेतना का लेखा।
जहां विचारों में हो सृजन की गूंज,
वहां ही खिलता है सभ्यता का पूंज।
ऋषियों का संदेश, योगियों का ज्ञान,
मुझे दिखाता है आत्मा का मुकाम।
शरीर से परे, मन से भी दूर,
सत्य का द्वार है, जिसमें हो न शोर।
सांसों में बसी है ब्रह्म की कथा,
हर पल में छिपी है आत्मा की प्रथा।
जब ध्यान में बैठूं, और खोजूं गहराई,
तो दिखे एकता, जो जग से जुड़ाई।
मैं न केवल देह, न केवल विचार,
मैं हूं अनंत, जो भेद से परे अपार।
यही है जीवन का सच्चा आयाम,
जो जोड़ दे मुझको ब्रह्म के संग्राम।
आओ सहेजें ऋषियों की धरोहर,
यही है सभ्यता की असली गहराई का अवसर।
सृजन और चेतना, जीवन का सार,
यही है मानवता का सच्चा आधार।
No comments:
Post a Comment
Thanks